कोऽर्थान् प्राप्य न गर्वितोविषयिणः कस्याऽऽपदोऽस्तङ्गत्ताः
स्त्रीभिः कस्य न खण्डितं भुवि मनः को नाम राज्यप्रियः।
कः कालस्य न गोचरत्वमगमत् कोऽर्थी गतो गौरवम् ?
को वा दुर्जनदुर्गणेषु पतितः क्षेमेण यातः पथि ? ।।४।।
धन प्राप्त कर किसको गर्व नहीं हुआ ? संसार में कौन ऐसा विषयी पुरुष है कि जिसकी विपत्तियाँ नष्ट हो गयी हैं , कौन ऐसा है जिसका मन स्त्रियों के द्वारा खण्डित न हो गया हो , कौन ऐसा है जो राजा को प्रिय है , कौन ऐसा है जो काल की दृष्टि से बच गया है , कौन ऐसा मनुष्य है जो किसी के यहाँ माँगने के लिए जाकर भी गौरव को प्राप्त हुआ हो , और कौन ऐसा है कि जो दुष्टों की दुष्टता में फँसकर भी कुशलपूर्वक दुनियाँ का रास्ता तै कर गया है?
स्त्रीभिः कस्य न खण्डितं भुवि मनः को नाम राज्यप्रियः।
कः कालस्य न गोचरत्वमगमत् कोऽर्थी गतो गौरवम् ?
को वा दुर्जनदुर्गणेषु पतितः क्षेमेण यातः पथि ? ।।४।।
धन प्राप्त कर किसको गर्व नहीं हुआ ? संसार में कौन ऐसा विषयी पुरुष है कि जिसकी विपत्तियाँ नष्ट हो गयी हैं , कौन ऐसा है जिसका मन स्त्रियों के द्वारा खण्डित न हो गया हो , कौन ऐसा है जो राजा को प्रिय है , कौन ऐसा है जो काल की दृष्टि से बच गया है , कौन ऐसा मनुष्य है जो किसी के यहाँ माँगने के लिए जाकर भी गौरव को प्राप्त हुआ हो , और कौन ऐसा है कि जो दुष्टों की दुष्टता में फँसकर भी कुशलपूर्वक दुनियाँ का रास्ता तै कर गया है?
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