यद्दूरं यद्दुराराध्यं यच्च दूरैर्व्यवस्थितम्।
तत्सर्वं तपसा साध्यं तपो हि दुरतिक्रमम्।।१७.३।।
दूर की वस्तु जिसके लिए कठिन आराधना की आवश्यकता पड़ती है वह तपस्या से साध्य हो सकती है। क्योंकि तपस्या सबसे प्रबल चीज होती है।
तत्सर्वं तपसा साध्यं तपो हि दुरतिक्रमम्।।१७.३।।
दूर की वस्तु जिसके लिए कठिन आराधना की आवश्यकता पड़ती है वह तपस्या से साध्य हो सकती है। क्योंकि तपस्या सबसे प्रबल चीज होती है।
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