शनिवार, 19 मार्च 2016

७.३ सन्तोषरूपी अमृत

सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तिरेव च।
न च तद्धनलुब्धानामितश्चेतश्च धावताम्।।७.३।।

सन्तोषरूपी अमृत से तृप्त मनुष्यों को जो सुख और शांति प्राप्त होती है वह धन के लोभ से इधर - उधर मारे - मारे फिरने वालों को कैसे प्राप्त होगी ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें