सन्तोषामृततृप्तानां यत्सुखं शान्तिरेव च।
न च तद्धनलुब्धानामितश्चेतश्च धावताम्।।७.३।।
सन्तोषरूपी अमृत से तृप्त मनुष्यों को जो सुख और शांति प्राप्त होती है वह धन के लोभ से इधर - उधर मारे - मारे फिरने वालों को कैसे प्राप्त होगी ?
न च तद्धनलुब्धानामितश्चेतश्च धावताम्।।७.३।।
सन्तोषरूपी अमृत से तृप्त मनुष्यों को जो सुख और शांति प्राप्त होती है वह धन के लोभ से इधर - उधर मारे - मारे फिरने वालों को कैसे प्राप्त होगी ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें