अनुलोमेन बलिनं प्रतिलोमेन दुर्जनम्।
आत्मतुल्यबलं शत्रुः विनयेन बलेन वा।।७.१०।।
इनको इस प्रकार नीचा दिखाना चाहिये
आत्मतुल्यबलं शत्रुः विनयेन बलेन वा।।७.१०।।
इनको इस प्रकार नीचा दिखाना चाहिये
- अपने से प्रबल शत्रु को उसके अनुकूल चल कर ,
- दुष्ट शत्रु को उससे प्रतिकूल चल कर और
- समान बलवाले शत्रु को विनय और बल से।
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