विप्रयोर्विप्रवह्नेश्च दम्पत्योः स्वामिभृत्ययोः।
अन्तरेण न गन्तव्यं हलस्य वृषभस्य च।।७.५।।
इनके बीच में से नहीं निकलना चाहिये
अन्तरेण न गन्तव्यं हलस्य वृषभस्य च।।७.५।।
इनके बीच में से नहीं निकलना चाहिये
- दो ब्राह्मणो के बीच में से
- ब्राह्मण और अग्नि के बीच से
- स्वामी और सेवक के बीच से
- स्त्री - पुरुष के बीच से
- हल - तथा बैल के बीच से।
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