सोमवार, 21 मार्च 2016

११.५ विद्या, दया, सच्चाई और पवित्रता

गृहासक्त्तस्य नो विद्या न दया मांसभोजिनः।
द्रव्यलुब्धस्य नो सत्यं स्त्रैणस्य न पवित्रता।।११.५।।

गृहस्थी के जंजाल  में फँसे व्यक्त्ति को विद्या नहीं आती , मांसभोजी के हृदय में दया नहीं आती , लोभी के पास सच्चाई नहीं आती और कामी पुरुष के पास पवित्रता नहीं आती।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें