गृहासक्त्तस्य नो विद्या न दया मांसभोजिनः।
द्रव्यलुब्धस्य नो सत्यं स्त्रैणस्य न पवित्रता।।११.५।।
गृहस्थी के जंजाल में फँसे व्यक्त्ति को विद्या नहीं आती , मांसभोजी के हृदय में दया नहीं आती , लोभी के पास सच्चाई नहीं आती और कामी पुरुष के पास पवित्रता नहीं आती।
द्रव्यलुब्धस्य नो सत्यं स्त्रैणस्य न पवित्रता।।११.५।।
गृहस्थी के जंजाल में फँसे व्यक्त्ति को विद्या नहीं आती , मांसभोजी के हृदय में दया नहीं आती , लोभी के पास सच्चाई नहीं आती और कामी पुरुष के पास पवित्रता नहीं आती।
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