मंगलवार, 15 मार्च 2016

३.१० त्याग दें

त्यजेदेकं कुलस्यार्थे ग्रामस्यार्थे कुलं त्यजेत्।
ग्रामं जनपदस्यार्थे आत्मार्थे पृथिवीं त्यजेत्।।३.१०।।

कुल की रक्षा के लिए एक को त्याग दें।  ग्राम की रक्षा के लिए कुल को त्याग दें। जिले की रक्षा के लिए ग्राम को त्याग दें। आत्मरक्षा के लिये पृथ्वी को त्याग दें।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें