मंगलवार, 15 मार्च 2016

३.६ मर्यादा

प्रलये भिन्नमर्यादा भवन्ति किल सागराः।
सागरा भेदमिच्छन्ति प्रलयेऽपि न साधवः।।३.६।।

समुद्र अपनी मर्यादा को प्रलयकाल में भंग कर देते हैं लेकिन सज्जन लोग प्रलयकाल में भी अपनी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करते हैं।  

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