श्लोकेन वा तदर्द्धेन तदर्द्धाऽर्द्धाक्षरेण वा।
अवन्ध्यं दिवसं कुर्याद् दानाध्ययनकर्मभिः।।२.१३।।
किसी श्लोक या उसके आधे भाग या उसके आधे के भी आधे भाग का मनन करो। क्योंकि भारतीय महर्षियों का कहना यही है कि , जैसे भी हो दान, अध्ययन (स्वाध्याय) आदि सब कर्म करके बीते हुए दिनों को सार्थक करो, इन्हें यों ही न गुजर जाने दो।
अवन्ध्यं दिवसं कुर्याद् दानाध्ययनकर्मभिः।।२.१३।।
किसी श्लोक या उसके आधे भाग या उसके आधे के भी आधे भाग का मनन करो। क्योंकि भारतीय महर्षियों का कहना यही है कि , जैसे भी हो दान, अध्ययन (स्वाध्याय) आदि सब कर्म करके बीते हुए दिनों को सार्थक करो, इन्हें यों ही न गुजर जाने दो।
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