मंगलवार, 15 मार्च 2016

३.१३ सामर्थ्यवाले, व्यवसायी और प्रियवादी मनुष्य

कोऽतिभारः समर्थानां किं दूरं व्यवसायिनाम्।
को विदेशः सुविद्यानां कः परः प्रियवादिनाम्।।३.१३।।

सामर्थ्यवाले पुरुष को कोई वस्तु भारी नहीं हो सकती।  व्यवसायी मनुष्य के लिए कोई प्रदेश दूर नहीं कहा जा सकता और प्रियवादी मनुष्य किसी का पराया नहीं कहा जा सकता।

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