मंगलवार, 15 मार्च 2016

२.१४ अग्नि के बिना ही शरीर को जला डालती हैं

कान्ता - वियोगः स्वजनापमानो ऋणस्य शेषः कुनृपस्य सेवा।
दरिद्रभावो विषमा सभा च विनाग्निना ते प्रदहन्ति कायम्।।२.१४।।

ये बातें अग्नि के बिना ही शरीर को जला डालती हैं
  1. स्त्री का वियोग ,
  2. अपने जनों द्वारा अपमान ,
  3. कर्ज देने से बचा हुआ ऋण ,
  4. दुष्ट राजा की सेवा ,
  5. दरिद्रता और स्वार्थियों की सभा।

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