कान्ता - वियोगः स्वजनापमानो ऋणस्य शेषः कुनृपस्य सेवा।
दरिद्रभावो विषमा सभा च विनाग्निना ते प्रदहन्ति कायम्।।२.१४।।
ये बातें अग्नि के बिना ही शरीर को जला डालती हैं
दरिद्रभावो विषमा सभा च विनाग्निना ते प्रदहन्ति कायम्।।२.१४।।
ये बातें अग्नि के बिना ही शरीर को जला डालती हैं
- स्त्री का वियोग ,
- अपने जनों द्वारा अपमान ,
- कर्ज देने से बचा हुआ ऋण ,
- दुष्ट राजा की सेवा ,
- दरिद्रता और स्वार्थियों की सभा।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें