सोमवार, 14 मार्च 2016

२.६ विश्वास न करें

न विश्वसेत् कुमित्रे च मित्रे चापि न विश्वसेत्।
कदाचित् कुपितं मित्रं सर्वगुह्यं प्रकाशयेत्।।२.६।।

(अपनी किसी गुप्त बात के विषय में ) कुमित्र पर तो किसी तरह विश्वास न करें और मित्र पर भी न करें।   क्योंकि हो सकता है कि वह मित्र कभी बिगड़ जाय और सारे गुप्त भेद खोल दे।

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