सोमवार, 14 मार्च 2016

१.६ स्त्री और धन से भी बढ़कर

आपदर्थे धनं रक्षेद्दारान् रक्षेद्धनैरपि।
आत्मानं सततं रक्षेद् दारैरपि धनैरपि।।१.६।।

आपत्तिकाल के लिए धनको और धन से भी बढ़कर स्त्री की रक्षा करनी चाहिए।  किन्तु स्त्री और धन से भी बढ़कर मनुष्य को स्वयं की रक्षा करनी चाहिए।

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