प्रणम्य शिरसा विष्णुं त्रैलोक्याधिपतिं प्रभुम्।
नानाशास्त्रोद्घृतं वक्ष्ये राजनीतिसमुच्चयम्।।१।।
मैं अपना सिर झुकाकर विष्णु भगवान् को प्रणाम करता हूँ जो तीनों लोकों के स्वामी हैं और हमारे आराध्य प्रभु हैं । यह शास्त्र कई शास्त्रो में से उत्तम राजनीति की बातों का संग्रह है।
मेरा मत
हर इन्सान अपने जीवन में पहली बार कुछ न कुछ करता ही है। और अपने जीवन में पहली बार कुछ भी करने से पहले हमें अपने काम करने की रूप - रेखा अवश्य तैयार कर लेनी चाहिये। आज अगर कोई व्यक्त्ति कोई व्यापार करना चाहता है तो वह पहले यह मंत्रणा कर लेता है जिसमें हर कार्य को वह कुछ भागों में बांटता है। उनमें से मुख्य बातें हैं :
अगर हम कोई भी कार्य करते हैं तो हमें अपने से बड़े लोगों का आशीर्वाद अवश्य ले लेना चाहिये। इसका कारण यह है कि हर इंसान के पास कुछ आत्मिक शक्ति होती है और वह उनके खुश होने से बढ़ जाती है। हम अगर अपने से बड़ो से विचार विमर्ष कर कोई कार्य करते हैं तो हमे कुछ अच्छी बातों का पता चलता है। पर आज जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है। वह ज्ञान जो हमारे पिता को थी आज उसकी कोई जरुरत नहीं है और शायद जो ज्ञान हमें हो वह हमारे बच्चों जो जरुरी न लगे। हम कभी नहीं चाहेंगे कि हमारे क्षमता को हमारे बच्चे नज़रअंदाज़ करें। इसलिए हमें हमारे बुजुर्गों की बातें अवश्य सुननी चाहिये।
हमारे भगवान भी हमारे माता - पिता के समान हैं। हमारे माता पिता हमें राह दिखाते है और हमारे भगवान सभ्यताओं को। इसलिये इससे अच्छी बात क्या होगी की हम अपने प्रभु के नाम को लेकर अपना कार्य आरम्भ करें।
नानाशास्त्रोद्घृतं वक्ष्ये राजनीतिसमुच्चयम्।।१।।
मैं अपना सिर झुकाकर विष्णु भगवान् को प्रणाम करता हूँ जो तीनों लोकों के स्वामी हैं और हमारे आराध्य प्रभु हैं । यह शास्त्र कई शास्त्रो में से उत्तम राजनीति की बातों का संग्रह है।
मेरा मत
हर इन्सान अपने जीवन में पहली बार कुछ न कुछ करता ही है। और अपने जीवन में पहली बार कुछ भी करने से पहले हमें अपने काम करने की रूप - रेखा अवश्य तैयार कर लेनी चाहिये। आज अगर कोई व्यक्त्ति कोई व्यापार करना चाहता है तो वह पहले यह मंत्रणा कर लेता है जिसमें हर कार्य को वह कुछ भागों में बांटता है। उनमें से मुख्य बातें हैं :
- Planning
- Organizing
- Staffing
- Directing
अगर हम कोई भी कार्य करते हैं तो हमें अपने से बड़े लोगों का आशीर्वाद अवश्य ले लेना चाहिये। इसका कारण यह है कि हर इंसान के पास कुछ आत्मिक शक्ति होती है और वह उनके खुश होने से बढ़ जाती है। हम अगर अपने से बड़ो से विचार विमर्ष कर कोई कार्य करते हैं तो हमे कुछ अच्छी बातों का पता चलता है। पर आज जमाना बहुत तेजी से बदल रहा है। वह ज्ञान जो हमारे पिता को थी आज उसकी कोई जरुरत नहीं है और शायद जो ज्ञान हमें हो वह हमारे बच्चों जो जरुरी न लगे। हम कभी नहीं चाहेंगे कि हमारे क्षमता को हमारे बच्चे नज़रअंदाज़ करें। इसलिए हमें हमारे बुजुर्गों की बातें अवश्य सुननी चाहिये।
हमारे भगवान भी हमारे माता - पिता के समान हैं। हमारे माता पिता हमें राह दिखाते है और हमारे भगवान सभ्यताओं को। इसलिये इससे अच्छी बात क्या होगी की हम अपने प्रभु के नाम को लेकर अपना कार्य आरम्भ करें।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें