सोमवार, 14 मार्च 2016

२.५ विष भरा घड़ा

परोक्षे कार्यहन्तारं प्रत्यक्षे प्रियवादिनम्।
वर्ज्जयेत्ताद्व्शं मित्रं विषकुम्भं पयोमुखम्।।२.५।।

जो पीठ पीछे अपना काम बिगाड़ता हो और मुँह पर मीठी  मीठी बातें करता हो। ऐसे मित्र को उसी प्रकार त्याग देना चाहिए जिस प्रकार विष भरे घड़े को लोग त्याग देते हैं। वह मित्र एक विष भरा घड़ा है जिसके मुख में थोड़ा सा दूध डाल दिया गया है। 

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