अधीत्येदं यथाशास्त्रं नरो जानाति सत्तमः।
धर्मोपदेशविख्यातं कार्याऽकाय शुभाऽशुभम्।।२।।
इस शास्त्र को पढ़ने के बाद मनुष्य सत्य और अच्छी बातों को जान सकेगा। धर्म में यह कहा गया है कि जो व्यक्त्ति शास्त्रों का ज्ञाता होता है वह अपने कार्य को शुभ और व्यवस्थित ढंग से कर सकता है।
मेरा मत
किसी भी प्राणी को ज्ञान इसी संसार में आकर मिलता है और उस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए उसे बहुत परिश्रम करना पड़ता है। पहले ज़माने में शास्त्र ही ज्ञान प्राप्त करने के साधन थे। उससे पहले सारा ज्ञान ऋषियों द्वारा बालकों को बोलकर सिखाया जाता था। फिर उसे पत्तों पर लिखा जाने लगा। जैसे जैसे दूसरे जगह के इंसान ने तरक्की की उसे अपने काम सरल बनाने कि इच्छा हुई। उसने अपने कार्य सरल भी कर लिए पर आज वह उस ज्ञान से बहुत दूर निकल गया है जो उनमें होना चाहिए। यह ज्ञान हमारे शास्त्रों में भरा पड़ा है।
हमारे शास्त्रों में जीवन जीने का तरीका लिखा है। जब हम इस तरह के शास्त्र पढ़ते हैं तब हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि हमें कब कौन सा कार्य करना है। हमें दूसरों के साथ किस तरह रहना है। हम जो ज्ञान शास्त्रों से पाते हैं वह ज्ञान जीवन के बहुत करीब होता है। आज जो ज्ञान हमारे बच्चे प्राप्त करते हैं वह ज्ञान किसी एक चीज़ के बारे में होता है। और वह भी समय के साथ बदलता रहता है। कंप्यूटर की दुनिया में १० साल में बहुत कुछ बदल जाता है। पर जो ज्ञान शास्त्रों में हैं वह आज भी उतना ही जरुरी है जितना की आज से हज़ारो वर्ष पूर्व था। आज जो ज्ञान दिया जाता है उसमे और हमारे शास्त्रों के ज्ञान में यह अंतर है कि आज का ज्ञान जीवन को सरल बनाने के लिए दिया जाता है और हमारे शास्त्रों का ज्ञान जीवन को उत्तम बनाने के लिए दिया जाता था। भले ही हमारे शास्त्रों का ज्ञान अपनाने में कठिन था पर वह हमें जीवन जीने का ढंग सिखा देता है।
इस ग्रंथ में हम जीवन जीने के तरीकों का ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे और हमें कौन सा कार्य कब करना है यह ज्ञात कर सकेंगे।
धर्मोपदेशविख्यातं कार्याऽकाय शुभाऽशुभम्।।२।।
इस शास्त्र को पढ़ने के बाद मनुष्य सत्य और अच्छी बातों को जान सकेगा। धर्म में यह कहा गया है कि जो व्यक्त्ति शास्त्रों का ज्ञाता होता है वह अपने कार्य को शुभ और व्यवस्थित ढंग से कर सकता है।
मेरा मत
किसी भी प्राणी को ज्ञान इसी संसार में आकर मिलता है और उस ज्ञान को प्राप्त करने के लिए उसे बहुत परिश्रम करना पड़ता है। पहले ज़माने में शास्त्र ही ज्ञान प्राप्त करने के साधन थे। उससे पहले सारा ज्ञान ऋषियों द्वारा बालकों को बोलकर सिखाया जाता था। फिर उसे पत्तों पर लिखा जाने लगा। जैसे जैसे दूसरे जगह के इंसान ने तरक्की की उसे अपने काम सरल बनाने कि इच्छा हुई। उसने अपने कार्य सरल भी कर लिए पर आज वह उस ज्ञान से बहुत दूर निकल गया है जो उनमें होना चाहिए। यह ज्ञान हमारे शास्त्रों में भरा पड़ा है।
हमारे शास्त्रों में जीवन जीने का तरीका लिखा है। जब हम इस तरह के शास्त्र पढ़ते हैं तब हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि हमें कब कौन सा कार्य करना है। हमें दूसरों के साथ किस तरह रहना है। हम जो ज्ञान शास्त्रों से पाते हैं वह ज्ञान जीवन के बहुत करीब होता है। आज जो ज्ञान हमारे बच्चे प्राप्त करते हैं वह ज्ञान किसी एक चीज़ के बारे में होता है। और वह भी समय के साथ बदलता रहता है। कंप्यूटर की दुनिया में १० साल में बहुत कुछ बदल जाता है। पर जो ज्ञान शास्त्रों में हैं वह आज भी उतना ही जरुरी है जितना की आज से हज़ारो वर्ष पूर्व था। आज जो ज्ञान दिया जाता है उसमे और हमारे शास्त्रों के ज्ञान में यह अंतर है कि आज का ज्ञान जीवन को सरल बनाने के लिए दिया जाता है और हमारे शास्त्रों का ज्ञान जीवन को उत्तम बनाने के लिए दिया जाता था। भले ही हमारे शास्त्रों का ज्ञान अपनाने में कठिन था पर वह हमें जीवन जीने का ढंग सिखा देता है।
इस ग्रंथ में हम जीवन जीने के तरीकों का ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे और हमें कौन सा कार्य कब करना है यह ज्ञात कर सकेंगे।
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