गुरुवार, 17 मार्च 2016

६.८ स्वार्थी मनुष्य

नैव पश्यति जन्मान्धः कामान्धो नैव पश्यति।
मदोन्मत्ता न पश्यन्ति अर्थी दाषं न पश्यति।।६.८।।

न जन्म का अन्धा देखता है, न कामान्ध कुछ देख पाता है और न उन्मत्त पुरुष ही कुछ देख पाता है।  उसी तरह स्वार्थी मनुष्य किसी बात में दोष नहीं देख पाता।

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