गुरुवार, 17 मार्च 2016

५.१७ मेघ, आत्मबल, नेत्र और अन्न

नास्ति मेघसमं तोयं नास्ति चात्मसमं बलम्।
नास्ति चक्षुः समं तेजो नास्ति धान्यसमं प्रियम्।।५.१७।।

मेघ जल के समान उत्तम और कोई जल नहीं होता।
आत्मबल के समान और कोई बल नहीं है।
नेत्र के समान और किसी में तेज नहीं है। और
अन्न के समान प्रिय कोई वस्तु नहीं है।

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