गुरुवार, 17 मार्च 2016

५.१४ तृण के समान

तृणं ब्रह्मविदः स्वर्गस्तृणं शूरस्य जीवितम्।
जिताक्षस्य तृणं नारी निःस्पृहस्य तृणं जगत् ।।५.१४।।

ब्रह्मज्ञानी के लिये स्वर्ग तिनके समान है। 
बहादुर के लिए जीवन तृण के समान है। 
जितेन्द्रिय को नारी और निस्पृह के लिए सारा संसार तृण के समान है।

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