श्रुत्वा धर्मं विजानाति श्रुत्वा त्यजति दुर्मतिम्।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात्।।६.१।।
मनुष्य सुनकर ही धर्म का तत्त्व समझता हैं। सुनकर ही दुर्बुद्धि को त्यागता है। सुनकर ही ज्ञान प्राप्त करता है और सुनकर ही मोक्षपद को प्राप्त कर लेता है।
श्रुत्वा ज्ञानमवाप्नोति श्रुत्वा मोक्षमवाप्नुयात्।।६.१।।
मनुष्य सुनकर ही धर्म का तत्त्व समझता हैं। सुनकर ही दुर्बुद्धि को त्यागता है। सुनकर ही ज्ञान प्राप्त करता है और सुनकर ही मोक्षपद को प्राप्त कर लेता है।
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