गुरुवार, 17 मार्च 2016

५.४ शील एक सा नहीं हो जाता

एकोदरसमुद्भूता एकनक्षत्रजातकाः।
न भवन्ति समाः शीला यथा बदरिकण्टकाः।।५.४।।

एक पेट से और एक ही नक्षत्र में उत्पन्न होने से किसी का शील एक सा नहीं हो जाता।  उदाहरण - स्वरूप बेर के काँटों को देखो।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें