काष्ठं कल्पतरुः सुमेरुरचलश्चिन्तामणी प्रस्तरः
सुर्यस्तीव्रकरः शशी क्षयकरः क्षारो हि वारां निधिः।
कामो नष्टतनुर्बलिदितिसुतो नित्यं पशुः कामगौ-
र्नैतांस्ते तुलयामि भो रघुपते कस्योपमा दीयते।।१२.१६।।
कल्पवृक्ष काष्ठ है , सुमेरु अचल है , चिन्तामणि पत्थर है , सूर्य की किरणें तीखी हैं , चन्द्रमा घटता - बढ़ता है , समुद्र खारा है , कामदेव शरीर रहित है , बलि दैत्य है और कामधेनु पशु है। इसलिए इनके साथ तो मैं आपकी तुलना नहीं कर सकता। तब हे रघुपते ! किसके साथ आपकी उपमा दी जाय ?
सुर्यस्तीव्रकरः शशी क्षयकरः क्षारो हि वारां निधिः।
कामो नष्टतनुर्बलिदितिसुतो नित्यं पशुः कामगौ-
र्नैतांस्ते तुलयामि भो रघुपते कस्योपमा दीयते।।१२.१६।।
कल्पवृक्ष काष्ठ है , सुमेरु अचल है , चिन्तामणि पत्थर है , सूर्य की किरणें तीखी हैं , चन्द्रमा घटता - बढ़ता है , समुद्र खारा है , कामदेव शरीर रहित है , बलि दैत्य है और कामधेनु पशु है। इसलिए इनके साथ तो मैं आपकी तुलना नहीं कर सकता। तब हे रघुपते ! किसके साथ आपकी उपमा दी जाय ?
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