गुरुवार, 24 मार्च 2016

१२.१४ पण्डित

मातृवत्परदारेषु परद्रव्याणि लोष्टवत्।
आत्मवत् सर्वभूतानि यः पश्यति स पण्डितः।।१२.१४।।

जो मनुष्य परायी स्त्री को माता के समान समझता , पराया धन मिट्टी के ढेले के समान मानता और अपने ही तरह सब प्राणियों के सुख - दुःख  समझता है वही पण्डित है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें