गुरुवार, 24 मार्च 2016

१२.२० चिन्ता धर्म की

नाऽऽहारं चिन्तयेत् प्राज्ञो धर्ममेकं हि चिन्तयेत्।
आहारो हि मनुष्याणां जन्मना सह जायते।।१२.२०।।

विद्वान् को चाहिए कि , वह भोजन की चिन्ता न किया करे।  चिन्ता करे केवल धर्म की , क्योंकि आहार तो मनुष्य के पैदा होने के साथ ही नियत हो जाया करता है।  

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें