गुरुवार, 24 मार्च 2016

१२.१५ वसिष्ठजी श्रीरामचन्द्रजी से कहते हैं

धर्मे तत्परता मुखे मधुरता दाने समुत्साहता
मित्रेऽवञ्चकता गुरौ विनयता चित्तेऽतिगम्भीरता।
आचारे शुचिता गुणे रसिकता शास्त्रेषु विज्ञातृता
रुपे सुन्दरता शिवे भजनता त्वय्यस्ति भो राघवा।।१२.१५।।

वसिष्ठजी श्रीरामचन्द्रजी से कहते हैं - हे राघव ! धर्म में तत्परता , मुख में मधुरता , दान  में उत्साह , मित्रों में निश्छल व्यवहार , गुरुजनों के समक्ष नम्रता , चित्त में गम्भीरता , आचार में पवित्रता , शास्त्रों में विज्ञता , रूप में सुन्दरता और शिवजी में भक्त्ति ये गुण केवल आप ही में है।  

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