शुक्रवार, 25 मार्च 2016

१३.१ उज्जवल कर्म

मुहूर्त्तमपि  जीवेच्च नरः शुक्लेन कर्मणा।
न कल्पमपि कष्टेन लोकद्वयविरोधिना।।१३.१।।

मनुष्य यदि उज्जवल कर्म करके एक दिन भी जिन्दा रहे तो उसका जीवन सुफल है।  इसके बदले इहलोक और परलोक इन दोनों के विरुद्ध कार्य करके कल्प भर जीवे तो वह जीना अच्छा नहीं है।

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