दह्यमानाः सुतीव्रेण नीचाः परयशोऽग्निना।
अशक्त्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकुर्वते।।१३.११।।
नीच प्रकृति के लोग औरों के यशरूपी अग्नि से जलते रहते हैं , उस पद तक तो पहुँचने की सामर्थ्य उनमें रहती नहीं। इसलिए वे उसकी निन्दा करने लग जाते हैं।
अशक्त्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकुर्वते।।१३.११।।
नीच प्रकृति के लोग औरों के यशरूपी अग्नि से जलते रहते हैं , उस पद तक तो पहुँचने की सामर्थ्य उनमें रहती नहीं। इसलिए वे उसकी निन्दा करने लग जाते हैं।
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