शुक्रवार, 25 मार्च 2016

१३.११ यशरूपी अग्नि

दह्यमानाः सुतीव्रेण नीचाः परयशोऽग्निना।
अशक्त्तास्तत्पदं गन्तुं ततो निन्दां प्रकुर्वते।।१३.११।।

नीच प्रकृति के लोग औरों के यशरूपी अग्नि से जलते रहते हैं , उस पद तक तो पहुँचने की सामर्थ्य उनमें रहती नहीं।  इसलिए वे उसकी निन्दा करने लग जाते हैं।  

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