शुक्रवार, 25 मार्च 2016

१३.५ नम्र

अहो बता विचित्राणी चरितानि महात्मनाम्।
अक्ष्मीं तृणाय मन्यन्ते तद्भारेण नमन्ति च।।१३.५।।

अहो ! महात्माओं के चरित्र , भी विचित्र होते हैं।  वैसे तो वे लक्ष्मी को तिनके की तरह समझते हैं। और जब वह आ ही जाती हैं तो इनके भार से दबकर नम्र हो जाते हैं।

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