शुक्रवार, 25 मार्च 2016

१३.२ सामने की बात

गते शोको न कर्तव्यो भविष्यं नैव चिन्तयेत्।
वर्तमानेन कालेन प्रवर्त्तन्ते विचक्षणाः।।१३.२।।

जो बात बीत गयी उसके लिए सोच न करो।  और न आगे होने वाली के ही लिए चिन्ता करो।  समझदार लोग सामने की बात को ही हल करने की चिन्ता करते हैं।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें