शुक्रवार, 25 मार्च 2016

१३.१९ एक अक्षर देने वाले

एकाक्षरप्रदातारं यो गुरुं नाऽभिवन्दते।
श्वानयोनिशतं भुक्त्वा चाण्डालेष्वभिजायते।।१३.१९।।

एक अक्षर देने वाले को भी जो मनुष्य अपना गुरु नहीं मानता तो वह सैकड़ों बार कुत्ते की योनि में रह - रह कर अन्त में चाण्डाल होता है।  

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