एकाक्षरप्रदातारं यो गुरुं नाऽभिवन्दते।
श्वानयोनिशतं भुक्त्वा चाण्डालेष्वभिजायते।।१३.१९।।
एक अक्षर देने वाले को भी जो मनुष्य अपना गुरु नहीं मानता तो वह सैकड़ों बार कुत्ते की योनि में रह - रह कर अन्त में चाण्डाल होता है।
श्वानयोनिशतं भुक्त्वा चाण्डालेष्वभिजायते।।१३.१९।।
एक अक्षर देने वाले को भी जो मनुष्य अपना गुरु नहीं मानता तो वह सैकड़ों बार कुत्ते की योनि में रह - रह कर अन्त में चाण्डाल होता है।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें