शुक्रवार, 25 मार्च 2016

१३.९ धर्मविहीन और धर्मात्मा

जीवन्तं मृतवन्मन्ये देहिनं धर्मवर्जितम्।
मृतो धर्मेण संयुक्त्तो दीर्घजीवी न संशयः।।१३.९।।

धर्मविहीन मनुष्य को मैं जीते मुर्दे की तरह मानता हूँ। जो धर्मात्मा था , पर मर गया तो वह वास्तव में दीर्घजीवी था।
 

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें