शुक्रवार, 25 मार्च 2016

१४.१७ कोयल कि आनन्दित करने वाली वाणी

तावन्मौनेन नियन्ते कोकिलैश्चैव वासराः।
यावत्सर्वजनानन्द - दायिनी वाक् प्रवर्तते।।१४.१७।।

कोयल तब तक चुपचाप दिन बिता देती है जबतक कि वह सब लोगों के मन को आनन्दित करने वाली वाणी नहीं बोलती है।

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