दाने तपसि शौर्ये वा विज्ञाने विनये नये।
विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा।।१४.७।।
दान , तप , वीरता , विज्ञान और नीति इनके विषय में कभी किसी को विस्मित होना ही नहीं चाहिये। क्योंकि पृथ्वी में बहुत से रत्न भरे पड़े हैं।
विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा।।१४.७।।
दान , तप , वीरता , विज्ञान और नीति इनके विषय में कभी किसी को विस्मित होना ही नहीं चाहिये। क्योंकि पृथ्वी में बहुत से रत्न भरे पड़े हैं।
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