शुक्रवार, 25 मार्च 2016

१४.७ दान , तप , वीरता , विज्ञान और नीति

दाने तपसि शौर्ये वा विज्ञाने विनये नये।
विस्मयो न हि कर्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा।।१४.७।।

दान , तप , वीरता , विज्ञान और नीति इनके विषय में कभी किसी को विस्मित होना ही नहीं चाहिये।  क्योंकि पृथ्वी में बहुत से रत्न भरे पड़े हैं।

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