अनवस्थिकार्यस्य न जने न वने सुखम्।
जनो दहति संसर्गाद्वनं सङ्गविवर्जनात्।।१३.१६।।
जिसका कार्य अव्यवस्थित रहता है उसे न समाज में सुख है , न वन में। समाज में संसर्ग से दुखी रहता है तो वन मे संसर्ग त्याग से दुःखी रहेगा।
जनो दहति संसर्गाद्वनं सङ्गविवर्जनात्।।१३.१६।।
जिसका कार्य अव्यवस्थित रहता है उसे न समाज में सुख है , न वन में। समाज में संसर्ग से दुखी रहता है तो वन मे संसर्ग त्याग से दुःखी रहेगा।
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