शुक्रवार, 25 मार्च 2016

१३.१६ कार्य अव्यवस्थित

 अनवस्थिकार्यस्य न जने न वने सुखम्।
जनो दहति संसर्गाद्वनं सङ्गविवर्जनात्।।१३.१६।।

जिसका कार्य अव्यवस्थित रहता है उसे न समाज में सुख है , न वन में।  समाज में संसर्ग से दुखी रहता है तो वन मे संसर्ग त्याग से दुःखी रहेगा।

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