शुक्रवार, 25 मार्च 2016

१४.५ मोक्षपद

धर्माख्याने श्मशाने च रोगिणां या मतिर्भवेत्।
सा सर्वदैव तिष्ठेच्चेत् को न मुच्येत बन्धनात्।।१४.५।।

कोई धार्मिक आख्यान सुनने पर , श्मशान में और रुग्णावस्था में मनुष्य की जैसी बुद्धि रहती है , वैसी यदि हमेशा रहे तो कौन मनुष्य मोक्षपद न प्राप्त कर ले ?

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें