ईप्सितं मनसः सर्वं कस्य सम्पद्यते सुखम्।
दैवायत्तं यतः सर्वं तस्मात् सन्तोषमाश्रयेत्।।१३.१४।।
अपने मन के अनुसार सुख किसे मिलता है। क्योंकि संसार का सब काम दैव के अधीन है। इसलिये जितना सुख प्राप्त हो जाय , उतने में ही सन्तुष्ट रहो।
दैवायत्तं यतः सर्वं तस्मात् सन्तोषमाश्रयेत्।।१३.१४।।
अपने मन के अनुसार सुख किसे मिलता है। क्योंकि संसार का सब काम दैव के अधीन है। इसलिये जितना सुख प्राप्त हो जाय , उतने में ही सन्तुष्ट रहो।
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