जले तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि।
प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारं वस्तुशक्त्तितः।।१४.४।।
जल में तेल , दुष्ट मनुष्य में कोई गुप्त बात , सुपात्र में थोड़ा भी दान और समझदार मनुष्य के पास शास्त्र , थोड़े होते हुए भी पात्र के प्रभाव से तुरन्त फैल जाते हैं।
प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारं वस्तुशक्त्तितः।।१४.४।।
जल में तेल , दुष्ट मनुष्य में कोई गुप्त बात , सुपात्र में थोड़ा भी दान और समझदार मनुष्य के पास शास्त्र , थोड़े होते हुए भी पात्र के प्रभाव से तुरन्त फैल जाते हैं।
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