दुरस्थोऽपि न दूरस्थो यो यस्य मनसि स्थितः।
यो यस्य हृदये नास्ति समीपस्थोऽपि दूरतः।।१४.८।।
जो मनुष्य जिसके हृदय में स्थान किये है , वह दूर रहकर भी दूर नहीं है। जो जिसके हृदय में नहीं रहता , वह समीप रहने पर भी दूर है।
यो यस्य हृदये नास्ति समीपस्थोऽपि दूरतः।।१४.८।।
जो मनुष्य जिसके हृदय में स्थान किये है , वह दूर रहकर भी दूर नहीं है। जो जिसके हृदय में नहीं रहता , वह समीप रहने पर भी दूर है।
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