शुक्रवार, 25 मार्च 2016

१३.७ आनेवाली विपत्ति

अनागतविधाता च प्रत्युत्पन्नमतिस्तथा।
द्वावेतौ सुखमेधेते यद्भविष्यो विनश्यति।।१३.७।।

जो मनुष्य भविष्य में आनेवाली विपत्ति से होशियार है और जिसकी बुद्धि समय पर काम कर जाती है ये दो मनुष्य आनन्द से आगे बढ़ते जाते हैं।  इनके विपरीत जो भाग्य में लिखा होगा , जो यह सोचकर बैठने वाले हैं उनका नाश निश्चित है।

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