यदिच्छसि वशीकर्त्तुं जगदेकेन कर्मणा।
पुरः पञ्चदशास्येभ्यो गां चरन्तीं निवारय।।१४.१३।।
यदि तुम केवल एक ही काम से सारे संसार को अपने वश में करना चाहते हो , तो पन्द्रह मुखवाले राक्षस के सामने चरती हुई इन्द्रियरूपी गैयों को उधर से हटा लो। ये पन्द्रह मुख कौन हैं - आँख , नाक , कान , जीभ और त्वचा ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ। मुख , पाँव , लिंग और गुदा ये पाँच कर्मेन्द्रिया। रूप , रस , गन्ध , शब्द और स्पर्श , ये पाँच ज्ञानेन्द्रियों के विषय हैं।
पुरः पञ्चदशास्येभ्यो गां चरन्तीं निवारय।।१४.१३।।
यदि तुम केवल एक ही काम से सारे संसार को अपने वश में करना चाहते हो , तो पन्द्रह मुखवाले राक्षस के सामने चरती हुई इन्द्रियरूपी गैयों को उधर से हटा लो। ये पन्द्रह मुख कौन हैं - आँख , नाक , कान , जीभ और त्वचा ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ। मुख , पाँव , लिंग और गुदा ये पाँच कर्मेन्द्रिया। रूप , रस , गन्ध , शब्द और स्पर्श , ये पाँच ज्ञानेन्द्रियों के विषय हैं।
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