शुक्रवार, 25 मार्च 2016

१४.१३ पन्द्रह मुखवाले राक्षस

यदिच्छसि वशीकर्त्तुं जगदेकेन कर्मणा।
पुरः पञ्चदशास्येभ्यो गां चरन्तीं निवारय।।१४.१३।।

यदि तुम केवल एक ही काम से सारे संसार को अपने वश में करना चाहते हो , तो पन्द्रह मुखवाले राक्षस के सामने चरती हुई इन्द्रियरूपी गैयों को उधर से हटा लो। ये पन्द्रह मुख कौन हैं - आँख , नाक , कान , जीभ  और त्वचा ये पाँच ज्ञानेन्द्रियाँ।  मुख , पाँव , लिंग  और गुदा ये पाँच कर्मेन्द्रिया। रूप , रस , गन्ध , शब्द और स्पर्श , ये पाँच ज्ञानेन्द्रियों के विषय हैं।

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