अग्निहोत्रं विना वेदाः न च दानं विना क्रियाः।
न भावेन विना सिद्धिस्तस्माभ्दावो हि कारणम्।।८.१०।।
बिना अग्निहोत्र के वेदपाठ व्यर्थ है और दान के बिना यज्ञादि कर्म व्यर्थ है। भाव के बिना सिद्धि नहीं प्राप्त होती , इसलिए भाव ही प्रधान है।
न भावेन विना सिद्धिस्तस्माभ्दावो हि कारणम्।।८.१०।।
बिना अग्निहोत्र के वेदपाठ व्यर्थ है और दान के बिना यज्ञादि कर्म व्यर्थ है। भाव के बिना सिद्धि नहीं प्राप्त होती , इसलिए भाव ही प्रधान है।
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