रविवार, 20 मार्च 2016

९.१० आडम्बर

निर्विषेणापि सर्पेण कर्तव्या महती फणा।
विषमस्तु न चाप्यस्तु घटाटोपो भयङ्करः।।९.१०।।

विष विहीन सर्प को भी चाहिये कि वह खूब लम्बी -चौड़ी फन फटकारे।  विष हो या न हो , पर आडम्बर होना ही चाहिये।

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