रविवार, 20 मार्च 2016

८.२० विद्या

विद्वान् प्रशस्यते लोके विद्वान् सर्वत्र गौरवम्।
विद्यया लभते सर्वं विद्या सर्वत्र पूज्यते।।८.२०।।

विद्वान् का संसार में प्रचार होता है , वह सर्वत्र आदर पाता है।  कहने का मतलब यह है कि विद्या से सब कुछ प्राप्त हो सकता है और सर्वत्र विद्या ही पूजी जाती है।

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