रविवार, 20 मार्च 2016

८.१६ रूप, कुल, विद्या और धन

निर्गुणस्य हतं रूपं दुःशीलस्य हतं कुलम्।
असिद्धस्य हता विद्या ह्यभागेन हतं धनम्।।८.१६।।

गुण विहीन मनुष्य का रूप व्यर्थ है , जिसका शील ठीक नहीं उसका कुल नष्ट है , जिसको सिद्धि नहीं प्राप्त हो सकी उसकी विद्या व्यर्थ है और जिसका भोग न किया जाय वह धन व्यर्थ है।

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