यस्मिन् रुष्टे भयं नास्ति तुष्टे नैव धनागमः।
निग्रहोऽनुग्रहो नास्ति स रुष्टः किं करिष्यति।।९.९।।
जिसके नाराज होने पर कोई डर नहीं है , प्रसन्न होने पर कुछ आमदनी नहीं हो सकती। न वह दे सकता और न कृपा ही कर सकता हो , तो उसके रुष्ट होने से क्या होगा ?
निग्रहोऽनुग्रहो नास्ति स रुष्टः किं करिष्यति।।९.९।।
जिसके नाराज होने पर कोई डर नहीं है , प्रसन्न होने पर कुछ आमदनी नहीं हो सकती। न वह दे सकता और न कृपा ही कर सकता हो , तो उसके रुष्ट होने से क्या होगा ?
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें