रविवार, 20 मार्च 2016

८.२३ यज्ञ

अन्नहीनो देहद्राष्ट्रं मन्त्रहीनश्र्च ऋत्विजः।
यजमानं दानहीनो नास्ति यज्ञसमो रिपुः।।८.२३।।

अन्नरहित यज्ञ देश का , मन्त्रहीन यज्ञ ऋषियों का और दान विहीन यज्ञ यजमान का नाश कर देता है।  यज्ञ के समान कोई शत्रु नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें