रविवार, 20 मार्च 2016

८.१३ शान्ति, सन्तोष और दया

शान्तितुल्यं तपो नास्ति न सन्तोषात्परं सुखम्।
न तृष्णया परो व्याधिर्न च धर्मो दया परः।।८.१३।।

शान्ति के समान कोई तप नहीं , सन्तोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है और दया से बड़ा कोई धर्म नहीं है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें