शान्तितुल्यं तपो नास्ति न सन्तोषात्परं सुखम्।
न तृष्णया परो व्याधिर्न च धर्मो दया परः।।८.१३।।
शान्ति के समान कोई तप नहीं , सन्तोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है और दया से बड़ा कोई धर्म नहीं है।
न तृष्णया परो व्याधिर्न च धर्मो दया परः।।८.१३।।
शान्ति के समान कोई तप नहीं , सन्तोष से बढ़कर कोई सुख नहीं है और दया से बड़ा कोई धर्म नहीं है।
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