रविवार, 20 मार्च 2016

८.२१ विद्याहीन

रूपयौवनसम्पन्ना विशालकुलसम्भवाः।
विद्याहीना न शोभन्ते निर्गन्धा इव किंशुकाः।।८.२१।।

रूप यौवन युक्त्त और विशाल कुल में उत्पन्न होकर भी मनुष्य यदि विद्याहीन होते हैं तो वे उसी तरह भले नहीं मालूम होते जैसे सुगन्धि रहित टेसू के फूल।

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