वित्तं देहि गुणान्वितेषु मतिमन्नाऽन्यत्र देहे क्वचित् प्राप्तं वरिनिधेर्जलं धनमुचां मधुर्ययुक्त्तं सदा।
जीवाः स्थावरजङ्गमाश्च सकलान् संजीव्य भूमण्डलं भूयः पश्यति देवकोटिगुणितं गच्छेत्तमम्भोनिधिम् ।।८. ४।।
हे मतिमान् ! गुणियों को धन दो , औरों को कभी मत दो। समुद्र से मेघ के मुख में प्राप्त होकर जल सदा मधुर हो जाता है और पृथ्वी पर चर - अचर सब जीवों को जिला कर फिर वही जल कोटि गुण होकर उसी समुद्र में चला जाता है।
जीवाः स्थावरजङ्गमाश्च सकलान् संजीव्य भूमण्डलं भूयः पश्यति देवकोटिगुणितं गच्छेत्तमम्भोनिधिम् ।।८. ४।।
हे मतिमान् ! गुणियों को धन दो , औरों को कभी मत दो। समुद्र से मेघ के मुख में प्राप्त होकर जल सदा मधुर हो जाता है और पृथ्वी पर चर - अचर सब जीवों को जिला कर फिर वही जल कोटि गुण होकर उसी समुद्र में चला जाता है।
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