रविवार, 20 मार्च 2016

८. ४ गुणियों को धन दो

वित्तं देहि गुणान्वितेषु मतिमन्नाऽन्यत्र देहे क्वचित्  प्राप्तं वरिनिधेर्जलं धनमुचां मधुर्ययुक्त्तं सदा। 
जीवाः स्थावरजङ्गमाश्च सकलान् संजीव्य भूमण्डलं भूयः पश्यति देवकोटिगुणितं गच्छेत्तमम्भोनिधिम् ।।८. ४।।

हे मतिमान् ! गुणियों को धन दो , औरों को कभी मत दो।  समुद्र से मेघ के मुख में प्राप्त होकर जल सदा मधुर हो जाता है और पृथ्वी पर चर - अचर सब जीवों को जिला कर फिर वही जल कोटि गुण होकर उसी समुद्र में चला जाता है।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें