रविवार, 20 मार्च 2016

८.१२ सिद्धि प्राप्त होना

काष्ठ - पाषाण - धातूनां कृत्वा भावेन सेवनम्।
श्रध्दया च तया सिद्धिस्तस्य विष्णोः प्रसादतः।।८.१२।।

काठ , पाषाण  तथा धातु की भी श्रद्धापूर्वक सेवा करने से और भगवत्कृपा से सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
 

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