काष्ठ - पाषाण - धातूनां कृत्वा भावेन सेवनम्।
श्रध्दया च तया सिद्धिस्तस्य विष्णोः प्रसादतः।।८.१२।।
काठ , पाषाण तथा धातु की भी श्रद्धापूर्वक सेवा करने से और भगवत्कृपा से सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
श्रध्दया च तया सिद्धिस्तस्य विष्णोः प्रसादतः।।८.१२।।
काठ , पाषाण तथा धातु की भी श्रद्धापूर्वक सेवा करने से और भगवत्कृपा से सिद्धि प्राप्त हो जाती है।
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